Indian Festivals. Bharat ke parva-tyohar. Hindu's festivals. Hindhu dharma ki pooja-paath
हमारा देश भारत को त्योहारों का देश ( country of festivals ) इसलिए कहा जाता है क्यूंकि यहाँ बारह महीने तीसों दिन कोई ना कोई पर्व-त्यौहार आता ही रहता है. वैसे भारत में जितने भी धर्म -संप्रदाय के लोग रहते हैं उनके अनुसार तो भारत ( India) में अनेकों पर्व त्यौहार हैं लेकिन हम यहाँ बात कर रहे हैं उन ख़ास पर्व त्योहारों की जो भारत में Hindu festivals हैं.
हिन्दू पर्व त्योहारों के नाम और पूजा की तिथि
1.चैत्र-शुक्ल नवमी को भगवान राम का जन्म दिन मनाया जाता है. राम भक्त इसे बड़े ही उत्साह से मनाते हैं. इस दिन व्रत रखकर पूजा की जाती है. यह पर्व मिथिला जहाँ देवी सीता का जन्म स्थान हैं और अयोध्या जहाँ राम का जन्म स्थान है, वहां ख़ास तौर से मनाया जाता है.
2.श्रावणी पूर्णिमा यह विशेकर ब्रह्मणों का पर्व है इस दिन वे रक्षा-बंधन द्वारा वर्णों के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. ब्राह्मण परिवार में इस दिन कलश-स्थापना होती है
3.भाद्र-कृष्णअष्टमी, ये भगवान कृष्ण का जन्म दिन है. अनेकों हिन्दू इस दिन व्रत रखते हैं और कृष्ण का जन्म समय आधी रात के व्यतीत होने पर भोजन करते हैं. वृन्दावन, राजस्थान और गुजरात में इस पर्व का विशेष महत्व है. श्रावण के शुक्ल पक्ष में तो कृष्ण की चल मूर्ती को झूले पर झुलाते हैं, इस उत्सव को झूलन कहा जाता है.
4.आश्विन का कृष्ण पक्ष पितरों का पर्व है. इस पक्ष में भावुक हिन्दू अपने पितरों को पिण्डदान करते हैं. अंतिम दिवस जो महालया के नाम से प्रसिद्द हैं, लाखों हिन्दू पिंडदान के लिए गया जाते हैं.
5.आश्विन-शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र माना जाता है. इसमें देवी दुर्गा की मूर्ती स्थापना और पूजा होती है और दशमी को नदी या पोखर में देवी की मूर्ती का विसर्जन कर दिया जाता है.
6.आश्विन-शुक्ल दशमी को, जो विजयादशमी के नाम से विख्यात है, मनाया जाता है. इस दिन श्रीराम ने रावण से युद्ध के लिए प्रस्थान किया था. इसी दिन अनेक क्षत्रिय शस्त्रों की पूजा भी करते हैं. यह सर्व साधारण लोगों के लिए उल्लास का दिन है. सभी हिन्दू इस पर्व को मानते हैं. इन दिनों जगह-जगह रामलीला समारोह का आयोजन किया जाता है. विजयादशमी के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है. कार्तिकेय- अमावस्या को दीपमालिका-उत्सव होता है.इस अवसर पर घर -घर की सफाई होती है और रंग विरंग की सजावटों से उसका कलेवर बदल दिया जाता है. व्यपारी वर्ग के लोग उसी दिन देवी महा-लक्ष्मी की पूजा करते हैं. रात में घरों में सैकड़ों दीप जल उठते हैं. बच्चे पटाखे और फूलझाड़ियों का आनंद लेते हैं. वैश्य समाज के लोग इसे नव वर्ष का शुभारम्भ मानते हैं इसलिए वो इसी दिन से नए बही - खाते में लिखने का श्रीगणेश करते हैं.
7. माघ-शुक्ल पंचमी को वसंत उत्सव मनाया जाता है.उस दिन महिलायें अपने-अपने घरों में तरह तरह के पकवान बनाती हैं. जो छात्र वर्ग के हैं वो अपने-अपने स्कूलों में सरस्वती पूजा समारोह में हिस्सा लेते है.
8.फाल्गुन-पूर्णिमा को होलिका दहन होता है. और दुसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंग और गुलाल के साथ होलिका उत्सव मनाया जाता है. सामान्य लोग डंफ और झाल बजाकर गीत- गा गाकर मदमस्त हो झूम उठाते हैं. शाम में गोधूलि की वेला में नगर और गाँव में घूम -घूमकर लोग नए वर्ष में प्रवेश करने के लिए भेद-भाव को भुलाकर सम्मिलित रूप से जीवन यापन करने का आह्वाहन करते हैं.
9.गणेश चतुर्थी को महाराष्ट्र का गणेश उत्सव मनाया जा है. वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्थी तिथि गणपति की तिथि है,किन्तु विशेष करके भाद्र -शुक्ल चतुर्थी अधिक प्रसिद्द है.
बंगाल की दुर्गा पूजा, उड़ीसा की रथ यात्रा. द्रविड़-देश का पोंगल मास और मिथिला क शरतपूर्णिमा -काजोरी-महोत्सव, बिहार का छठ पूजा ऐसे त्यौहार हैं जो क्षत्रिय विशेषता रखते हैं. इसके अलावे और भी कुछ प्रमुख त्यौहार हैं जैसे कि
10. वैष्णव व्रत - चैत्र शुक्ल नवमी को राम जी का जन्मदिवस मनाया जाता है.
वामन -द्वादशी व्रत : भाद्र -शुक्ल एकादशी को भगवान वामन का जन्म -दिवस मनाया जाता है.
वर्ष के प्रत्येक मास की दोनों एकादशी तिथियाँ.
11.शिव सम्बन्धी व्रत - प्रत्येक मास की द्वादशी कोप्रदोष -व्रत और त्रयोदशी को शिवरात्री व्रत होता है.
फाल्गुन मास की शिवरात्रि महाशिवरात्रि कही जाती है. श्रावण मास को विशेष रूप से शिवमास समझा जाता है. इसके प्रति सोमवार को पूजन तथा उत्सव होते हैं और उसमे स्त्री पुरुष समान रूप से बड़े ही उल्लास से भाग लेते हैं.
12.विष्णु- शिव सम्मिलित व्रत :- कार्तिक -शुक्ल चतुर्दशी वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से प्रख्यात है. इस तिथि को विष्णु और शिव की पूजा एक साथ होती है. इस व्रत को मानाने वालों की संख्या बहुत कम है.
13.देवी सम्बन्धी व्रत :- चैत्र तथा आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रथम नौ दिन "नवरात्र के नाम से प्रसिद्द है. नौ दिन बहु ही धूमधाम से देवी का पूजन कर दशमी को भव्य जुलूस के साथ जल में उनका विसर्जन किया जाता है. बंगाल , असं तथा बिहार में यह उत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है.
14.सूर्य व्रत :- प्रत्येक संक्रांति को सौर्य सम्प्रदाय वाले सूर्य की उपासना करते हैं. किन्तु मुख्य संक्रांति माघ और वैशाख मासों की क्रमश: मकर तथा मेष नक्षत्रों की ही है,जिन्हें सभी लोग किसी न किसी रुप में मनाते हैं. इस त्यौहार में नदी -स्नान और दानादि का महत्व है. रविवार सूर्य का दिन होता है, अत: हिन्दू रविवार को भोजन के साथ किसी भी रूप में नमक का व्यवहार नहीं करते. निस्संदेह सूर्य की पूजा स्वास्थ्य -वर्धन के लिए की जाती है और सप्ताह में एक दिन नमक न खाने के पीछे भी यही कारण है. सूर्य की पूजा से आध्यत्मिक वृद्धि होती है.
15.छठ :- कार्तिक शुक्ल षष्ठी को, जो बड़ी नेम -निष्ठा एवं पवित्रता के साथ छठ-पर्व मनाया जाता है,उसकी भी उपादेयता अनेकों चर्मरोगों जिसमे प्रधानतया कुष्टरोग है, से छुटकारा पाना ही है. बिहार में लोग इस पर्व कोबड़े भक्ति भाव से मनाते हैं. सूर्य -षष्ठी के को दिन भर निर्जला उपवास रखकर संध्या में डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं और सप्तमी के प्रात: काल बाल सूर्य दर्शन एवं उसकी रश्मियों का जल के माध्यम से स्पर्श करते हुए दुसरा अर्ध्यदान कर व्रत की समाप्ति करते हैं.
16.अन्य पर्व : - अनंत चतुर्दशी ( भाद्र शुक्ल चतुर्दशी ) यम द्वितीया व्रत ( कार्तिक शुक्ल द्वितीया) तथा तीज व्रत ( भाद्र शुक्ल द्वितीया ) महत्वपूर्ण है. यम द्वितीया विशेष रूप से भाई का बहन का पर्व है. इस दिन बहन भाई की पूजा कर उसकी कलाई में राखी का धागा बांधती है.
तीज - यह व्रत सुहागिन स्त्रियाँकरती हैं क्यूंकि ये उनका सौभाग्यवर्धक और सुहाग-रक्षक महान व्रत समझा जाता है. स्त्रियाँ इस तिथि के दिन और रात निर्जला उपवास कर दुसरे दिन सबेरे अच्छे पकवान बनाकर पति के साथ ग्रहण करती है. यह पति पत्नी के बीच बहुत ही पुण्य प्राप्ति वाला व्रत है.
17.जीवत्पुत्रिका व्रत: - आश्विन कृष्ण अष्टमी को स्त्रियाँ केवल अपनी संतान के लिए ये व्रत रखती हैं.
पिंडदान और तर्पण : - आश्विन का पूरा कृष्ण पक्ष पितृपक्ष कहलाता है. और आमवाश्या को विशेष रुप से पिंडदान और तर्पण किया जाता है. ऐसा विश्वास है कि गया की प्रेतात्मा पहाड़ी पर पिंडदान एवं फल्गु नदी के किनारे श्राद्ध करने पर और उसके जल से तर्पण करने पर पितर पितृलोक से उद्धार पा जाते हैं.
18.सूर्य ग्रहण - चन्द्र ग्रहण एवं संक्रांति के दिन पर्व के दिन समझे जाते हैं. ऐसे अवसरों पर पवित्र स्थलों के जलाशयों एवं नदियों में स्नान कर दान देने की महत्ता है. ग्रहण के दिन कुरुक्षेत्र के वृहत जलाशय में स्नान करने से हिन्दू लोग स्वयं को पाप-मुक्त समझते हैं.
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