भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक मंदिरों में मूर्ती-कला एवं स्थापत्य -कला का ज्वलंत प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, इनमे प्रमुख हैं ओड़िसा (Odisha) का कोणार्क सूर्य मंदिर ( Konark Surya Mandir) है . इसे बनने में कितने वर्ष और मजदूर लगे अथवा कोणार्क सूर्य मंदिर ( Konark sun temple in Hindi) में कितनी मूर्तियाँ हैं ये भी जानेंगे किन्तु पहले जानिये भारत के सभी दर्शनीय स्थलों के नाम ( all tourists places in India in Hindi)
3.एलोरा
4.दिल्वारा
5.रामेश्वरम
6.जैसलमेर
8.श्रवणवेलगोल
9.मीनाक्षी
10.शिवखोरी
11.कुम्भकोणम
12.वेलूर
13.त्रुपुरी
14.एकलिंग
15.चिदंबरम
16.ग्वालियर
17.आमेर
19.दशपुर
20.क्रिम्ची
21.एलिफेंटा गुफा
22.डीपचली
24साँची
25.भरहुत
कोणार्क:- कोणार्क का सूर्य मंदिर भारतीय वास्तुकला के इतिहास का एक स्वर्णिम तथा शाश्वत पृष्ठ है. उड़ीसा में चन्द्रभाग नदी के तट पर निर्मित यह अनुपम मंदिर भारतीय जीवन , संस्कृति , दर्शन और समाज के साथ प्रणय और वीरता का प्रतीक है. 1200 शिल्पियों ने निरंतर 16 वर्षों तक श्रमदान देकर इसके निर्माण कार्य में लगे रहे. उस समय के तत्कालीन राजा ने अपने १२ वर्ष का पूरा लगान इसी मंदिर को बनाने में खर्च किया. इसलिए आज इसे देखकर लगता है कि इसमें लगा धन और समय व्यर्थ नहीं गया. कोणार्क की भव्यता , सूक्ष्म भावाभियक्ति, सज्जा यथार्थ दर्शन एवं कल्पना शक्ति पिछले 700 सौ वर्षों से कला - विवेचकों और सामान्य दर्शकों को समान रूप से मुग्ध करती आई है.
सूर्यदेव का यह विशाल मंदिर अन्य मंदिरों से इस बात से भिन्न है कि इसमें कोई मूर्ती नहीं है. फिर भी उड़ीसा की जन जीवन में आज भी इसका जिवंत स्थान है. वर्ष में एक बार माघ शुक्ल सप्तमी को कोणार्क के प्रांगण में भक्ति भाव से भरे नर -नारियों की विशाल भीड़ एकत्र होती है.इस तरह इस दिन ये मंदिर अपरमित भीड़ द्वारा सूर्य देवताके प्रति प्रकट की गयी श्रद्धा से मुखरित हो उठता है. इसकी जीर्ण दीवारों से सूर्य भगवान् के जय जयकार तथा स्त्रोतों एवं मन्त्रों की ध्वनि गूँज उठती है और सच्चे हृदयों एवं भाव कम्पित कंठों से निकले भजन इसके विशाल प्रांगण को भक्तिरस लहरों से प्लावित कर देते हैं.
मंदिर के रथ के पहिये , उसमे जुते सात घोड़े और उसपर सारथि के बैठने का स्थान कलात्मक दृष्टि से बने हैं. इसलिए यह सूर्य मंदिर अपनी कला के विश्वा का सर्वश्रेष्ठ मंदिर कहे जाने का आधिकारी है. इसकी स्थापत्य कला अद्भूत है. नवगृह की मूर्तियाँ, जो एक ही अखंड शिल्ला में हैं,दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देती है. मंदिर के चारों ओर निम्न भाग में घोड़े हाथी सदृश्य पशुओं तथा भयंकर युद्धों के के सुन्दर तथा आकर्षक दृश्य अंकित हैं. इन दृश्यों को देखने से सर्वत्र विजय,शोर्य और आत्म विश्वास का उल्लास दृष्टिगोचर होता है. युद्ध का ऐसा सजीव और सशक्त दृश्य उड़ीसा के किसी अन्य मंदिर में देखने को नहीं मिलता.कुशल हाथों द्वारा निर्मित इस शिल्पकृति के अवशेषों को देखकर आज भी दर्शक आश्चर्य से स्तंभित हो उठते हैं और उनका ह्रदय शिल्पियों के प्रति प्रशंसा भर उठता है.
कोणार्क मंदिर का प्रमुख आकर्षण इसकी प्रणय - मूर्तियाँ हैं.प्रेमापर्ण की विभिन उल्लसित मुद्राओं ,सुख विनिमय के सम्मोहक क्षणों और प्रणयी मन की संवेदनशीलता को इस कुशलता से अंकित किया गया है कि दर्शक दाँतों तलेअंगुली दबाकर रह जाते हैं.मानों इन मूर्तियों का निर्माण मानव शिल्पियों ने नहीं,वरन महान प्रेमी आत्माओं ने किया होगा.
शिल्पियों की कुशलता एवं रस सृजन क्षमता चुम्बन आदि श्रृंगारिक विषयों में नहीं , अपितु सैनिकों की पत्नी और बच्चों से बिदाई , गायकों एवं संगीतज्ञों का उल्लास आदि विषयों में भी अपूर्व रूप से प्रकट हुई है . प्रभात, मध्याहन और सायंकाल के दृश्य की तीन मूर्तियाँ अपने भाव सौंदर्य की अमिट छाप दर्शकों पर छोड़ती है . पशुओं तथा पक्षियों का चित्रण भी उतनी ही भावनाशीलता के साथ किया गया है. हाथियों का अंकन इसका नमूना है.
मंदिर के बाहर "संसार" नाम की एक मूर्ती है जिसमे लौकिक जीवन से सम्बंधित प्रत्येक वस्तु को अंकित किया गया है. प्रणय के प्रत्येक बंधन और उसकी आकांक्षा की इसमें जीवंत तथा समर्थ अभियक्ति है.
वस्तुत: मंदिर सम्पूर्ण उस युग के स्थपतियों के शिल्प कौशल का द्योतक है. मंदिर में सौ फुट से लेकर चार सौ फुट तक की ऊंचाई के अनेक शिलाखंड लगाए गए हैं. आधुनिक क्रेनों और वाहनों के बिना इतने अत्यंत भारी सामान वहां किस तरह उठाकर लाये गए तथा दीवारों में जोड़े गए, यह कल्पनातीत और विस्मय से पूर्ण है.
आकार, श्रम, शिल्प और कला- सभी दृष्टियों में कोणार्क महान है. कला ही इसे काल के कूर और कठोर प्रहारों के बावजूद आज तक अमर बनाए हुए है.
कोणार्क पूरी से 54 मील दूर और भुनेश्वर से 44 मील की दूरी पर है. मंदिर से ग्राम 4 मील दूर है. भारत सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से एक सुन्दर विश्रामआलय बनवाया गया है जिसमे ठहरने और भोजन पानी की समुचित व्यवस्था है.
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